Thursday, February 19, 2009

my new poem

हवा विषैली है पश्चिम की
यहाँ न इसको बहने दो
भारत को भारत रहने दो
घर अपना मत ढहने दो ॥
निज पुरखों ने बलिदानों से
जिसको जग-सिरमौर बनाया
भारत को 'सोने की चिड़िया'
सारी दुनिया ने बतलाया
मानवता हित पूर्ण विश्व को
हमने गीता-ज्ञान दिया था
जो भी आया, हमने उसको
भाई कहकर मान दिया था
आस्तीन के साँपों! तुमको
हमने गीता-ज्ञान दिया था
जो भी आया, हमने उसको
भाई कहकर मान दिया था
आस्तीन के साँपों! तुमको
हमने जी-भर दूध पिलाया
ज़हरीलो! तुमने डस-डस कर
भारत का क्या हाल बनाया
लेकिन अभी तो हमने तुमको
अपना एक रुप दिखलाया
क्रोध आया तो शत्रु-सर्प फण
हमने ऐड़ी तले दबाया
ज़िन्दा रहना चाहो तो, मत
क्रोध में हमको दहने दो
भारत को भारत रहने दो
घर अपना मत ढह्ने दो ॥
देव पाणिनि धन्य धन्य हैं
जग को अक्षर ज्ञान कराया
शून्य खोज, भारत ने जग को
प्रथम गणित का भान कराया
धन्वन्तरी ने सबसे पहले
रोगों का उपचार किया था
संजीवन विद्या के द्वारा
शव में भी सञ्चार किया था
राजनीति का ज्ञान न मिलता
अर्थशास्त्र कब जग में आता
भरत भूमि का चणक पुत्र जो
सारे जग को नहीं सिखाता
सुनें संस्कृति के दुश्मन अब
और नहीं पाखण्ड चलेगा
निज पुरखों के दिव्य ज्ञान का
भारत – भू पार दीप जलेगा
बांध स्वार्थ के और न बांधो
प्रेम की सरिता बहने दो
भारत को भारत रहने दो
घर अपना मत ढहने दो ॥
व्यवसायी बन आये गोरे
कूटनीति का दांव चलाया
घर की फूट हमें ले डूबी
भारत माँ को कैद कराया
त्याग, तपस्या, बलिदानों से
गोरों का साम्राज्य हिला था
खण्डित थी पावन भारत-भू
टूटा फूटा देश मिला था
अँग्रेजी ढर्रे पर ही जब
हमने शासन-तंत्र बनाया
कूछ भूले-भटके बेटों ने
अपने हाथों देश जलाया
वोट डाल निश्चिंत हुए हम
बेफिक्री की नींद सो गए
भ्रष्ट हो गए शासक अपने
नेता माला-माल हो गए
हमने न्यौता देकर खुद ही
मल्टी नेशन को बुलवाया
खूब विदेशी चकाचौंध में
अपनी आँखों को चुँधियाया
वस्तु, वास्तु, उद्योग कभी सब
हमने ही जग को सिखलाया
क्युँ भूले अब निज गौरव हम
क्यूँ निज संस्कृति को ठुकराया
आयातित चीज़ों का आखिर
कब तक हम उपयोग करेंगे
और हमारे संसाधन का
दोहन कब तक लोग करेंगे
अर्थ-तन्त्र है विवश हमारा
जाल कर्ज़ का कसता जाता
'सोने की चिड़िया' भारत को
नाग विदेशी डसता जाता
जला विदेशी माल की होली
ब्यार स्वदेशी बहने दो
भारत को भारत रहने दो
घर अपना मत ढहने दो ॥



--
Raghubar Jha
Consultant:- Legal & HR
Email:- raghubar.kumar@gmail.com
Mob:-   +919811287452, +919958050457

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